Saturday, July 23, 2011

अन्न छोड़ अन्ना बनने चले सोरेन

कभी अन्न -अनाज वाले महकमे के मुखिया रहे नलिन सोरेन अब अन्न त्याग कर झारखण्ड के नए अन्ना बनने के जुगाड़ में जुट गए हैं....अब भई ऐलान से गुरूजी बाप-बेटे परेशान हैं....भला ऐसी भी क्या अन्नागिरी कि अपनी ही पार्टी वाली सरकार के खिलाफ तीर धनुष थाम लिए...अरे भई गुरूजी आपको इसलिए थोड़े ही तीर-कमान दिए थे कि आप उन्हीं पर तान दें....बताईए अभी तक तो गुरूजी जमशेदपुर में कटी नाक की सर्जरी के लिए ओपरेशन थियेटर जाने को ही थे  की आप ये ऐलान कर उनके एक नया सिरदर्द दे दिए न...खैर अच्छा ही हुआ कि बैठक से पहले ही आप ये भी बता दिए कि २८ तारीख से आप नाली में पानी ठीक से बह सके इस नेक मकसद के लिए दाना-पानी छोड़ने वाले हैं...बैठक में लगे हाथ आपको जूस पिला कर अनशन तोडना है कि बलजोरी मामला निपटाना है इस पर मंथन हो जाएगा...मगर नलिन जी अगर सरकार मनाने के फेर में पड़ी और नाली पर ठीक से पानी बहने का कमोबेश ऐलान कर दे तो आप अपने इलाके में अन्ना बन जायेंगे......यानी ALL IS WELL लेकिन सरकार न मानी तो क्या भूख से बिल्बिलायेगा का...अ तब क्या कीजियेगा अगर सरकार बाबा रामदेव जैसी कार्रवाई कर देगी....तब तो आप नायक के बजाय खलनायक बन जायेंगे न...तब तो न नाली-सड़क सड़क बनेगी और पार्टी के कोपभाजन बन जायेंगे सो अलग...यानी कहानी चौबे...छब्बे...दूबे की हो जाएगी.... नलिन बाबू ले-दे कर तो आप दूसरी बार विधायक बने हैं उसमे ऐसा अंदाज़ ...जो दो कदम चले नहीं वो रफ़्तार की बातें करते हैं...खैर अन्न छोड़ अन्ना बनने  के इस अभियान के लिए हमारी शुभकामनाएं ............

Tuesday, June 28, 2011

शंखनाद .....फुस्स.....फुस्स...

मौका था कमल फूल वाली सरकार का हाथ वाली सरकार से दो - दो हाथ करने का...जोश ही जोश में  भगवान् कृष्ण के अंदाज़ बिहारी बाबू ने शंख फूंकने  का मन बना लिया ...इरादा था बिलकुल पक्का ....थाम लिए शंख ....
महंगाई के खिलाफ करने लगे एलान - ए -जंग ....शत्रुघ्न बाबू इहे पांचजन्य बजाकर करने चले थे महंगाई के खिलाफ जंग का एलान ....पर ई का  ...चार चार शंख बज रहे थे लेकिन जिस शंख पर था सबका नज़र ऊ तो.....फुस्स ....फुस्स ...और फुस्स ही हुए जा रहा था ....अरे शत्रु भईया ...जिसका काम उसी को साजे दूजा करे तो डंडा बाजे ...शंख तो  पंडी जी सब बजा ही रहे थे...कहे बेकारे में एतना जोर लगाये ....शंख तो बजा नहीं उलटे अपनी और पार्टी की भद्द पिटवा दिए...ख्वामखाह मीडिया वालों को क्लास लेने का मौक़ा दे दिए...खैर ,  शंखनाद तो हुआ नहीं अलबत्ता नाराजगी का बिगुल जरूर बज गया....मंत्री महोदय गिरिराज बाबू बीच्चे में सभा छोड़ कर चल दिए...क्या पूछे.....  कारण ...वहीँ कुर्सी न ....मंच पर मनपसंद कुर्सी यानी जगह नहीं मिला सो पारा हो गया हाई...अब गिरिराज  बाबू  ठहरे नेता  आदमी  ...कुर्सिये के लिए सारी जंग है...अ कुर्सिये नहीं मिलेगा तो न शंख बजेगा न घंटा के अंदाज़ में गाल फुलाए चल दिए...भाई भजप्पा वाले सब.... अईसे जो आपके नेता सब शंख फुस्स-फुसायेंगे...गाल फुलायेंगे ...तो काम चलेगा...कमल का फूल तो मुरझा न जाएगा जी...अ गिरिराज बाबू आप भी ई बात बढ़िया से समझ लीजिये...न तो फिर भी कुर्सी नहिये मिलेगा...

Sunday, June 26, 2011

दाऊद खान का किला

 

 औरंगाबाद के दाऊद नगर में  मौजूद सदियों पुराना दाऊद खान का किला इतिहास के पन्नों में अपनी अहम पहचान रखता है.... ऐतिहासिक शिल्प - वास्तुकला की बेहतरीन मिसाल के साथ - साथ दाऊद खान की कुशल युद्ध नीति का परिचायक भी है...यह किला खासमखास सिपहसलार दाऊद खान की पलामू फतह की यादगारी के तौर पर मशहूर है.....

कहा जाता है कि सन १६६० में औरंगजेब ने अपने विश्वासपात्र दाऊद खान को साठ हज़ार सैनिकों व साजोसामान से लैस कर पलामू फतह करने के लिए भेजा....इस सिलसिले दाऊद खान ने पलामू कूच किया ....पलामू पर जीत हासिल करने के बाद पटना लौटने दौरान दाऊद को मालूम हुआ कि अच्छा में मिगल खजाने की लूट का सिलसिला गुजरे काफी वक़्त से लगातार जारी है...लूट पर लगाम लगाने के इरादे से दाऊद खान ने सिलौटा-बखौरा गाँव में सैन्य छावनी बनाने का फैसला किया ...मगर दाऊद खान के लिए छावनी बनाना टेढ़ीखीर बन गया ....दरअसल इसी इलाके के अच्छा गाँव में दबंगों द्वारा मुगलों के खजानों को लूट लिया जाता था...ये इतने शक्तिशाली थे कि महीनों यह किला नहीं बनाया जा सका था...दिन में जहाँ किले का निर्माण कार्य होता था वहीँ रात को ये हल्ला बोल उसे ढहा देते थे...मगर दाऊद ने अपनी कुशल युद्ध नीति के तहत यहाँ बहरी जातियों को लाकर बसा दिया...नतीजा ये हुआ कि दोनों समुदाय आपस में भीड़ गए ...अंततः दस सालों में इस दस एकड़ में फैली सैन्य छावनी का निर्माण पूरा हो सका और लूट का सिलसिले को रोका जा सका...

यह किला न केवल दाऊद खान की युद्धकला और उसके सर्वोत्तम सेनानायक होने का गवाह है बल्कि अनुपम शिल्पकला का अद्भुत नमूना है...जरूरत है तो बस सरकार और लोगों को इसके प्रति संजीदा होने की ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा जा सके.